मुनव्वर मेरी आंखों को मेरे शमसुद्दूहा करदे

मुनव्वर मेरी आंखों को मेरे शमसुद्दूहा करदे
गमों की धूप में वह सायाए ज़ुल्फे दुता कर दे

जहां बानी अता करदे भरी जन्नत हीपा कर दे
नबी मुख्तार कुल है जिसको जो चाहे अता करदे

जहां में उनकी चलती है वह दम में क्या से क्या कर दे
ज़मी को आसमा कर दे सुरैया को सरा कर दे

फज़ामे उड़ने वाले यू ना इतराए निदा कर दे
वह जब चाहे जिसे चाहे उसे फरवा रवा कर दे

मुझे क्या फिक्र हो अख्तर मेरे यावर है वह यावर
बलाओ को मेरी जो खुद गिरीफ्तारे बला कर दे

अता करदे बुला करदे बिठा करदे उठा करदे
नबी मुख्तार कुल है जैसे जब चाहे अता कर दे

सूराका को भी सोने के वह कंगन भी अता कर दे
नबी मुख्तार कुल है जिसको जो चाहे अता करदे

तमन्ना है दिल ए अशरफ बस इतनी है सरे कौसर
जब आका जामें कौसर दे लबे अक्दस लगा कर दे

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