रोक लेती है आपकी निस्बत

रोक लेती है आपकी निस्बत
तीर जितने भी हम पे चलते हैं
यह करम है हुजूर का हम पर
आने वाले अजब चलते हैं

वोही भरते हैं झोलियां सबकी
वोह समझते हैं बोलियां सबकी
आवो दरबार ए मुस्तफा को चले
गम खुशी में वहीं पे ढ़लते हैं

अब हमें क्या कोई गिराए गा
हर सहारा गले लगाएगा
हमने खुद को गिरा लिया है वहां
गिरने वाले जहां संभलते हैं

अपनी औकात सिर्फ इतनी है
कुछ नहीं बात सिर्फ इतनी है
कल भी टुकड़ों पे उनके पलते थे अ
ब भी टुकड़ों पर उनके पलते हैं

जिक्रे सरकार के उजालों की
बे इनायत है रिफ्अते खालीद
ये उजाले कभी ना सिमटे गे
ये वो सूरज नहीं जो ढ़लते हैं

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