खुशरवि अच्छी लगी ना सरवरी अच्छी लगी

खुशरवि अच्छी लगी ना सरवरी अच्छी लगी
हम फकीरो को मदीने की गली अच्छी लगी

मैं ना जाऊंगा कही भी दर नबी का छोड़ कर
मुझको कूए मुस्तफा की चाकरी अच्छी लगी

रख दिए सरकार के क़दमो में सुल्तानों ने सर
सरवरे कौनो मका की सादगी अच्छी लगी

नाज़ करतु ऐ हलीमा सरवरे कौनेन पर
गर लगी अच्छी तो तेरी झोपड़ी अच्छी लगी

जिनको करनी है शहेनशाहो की तारीफे करे
मुझको आक़ा बस तुम्हारी नात ही अच्छी लगी

क़ब्र रौशन हो गई नूर ए नबी से इस तरह
आशिको को मौत भी और क़ब्र भी अच्छी लगी

मौत जो मांगी दयारे मुस्तफा के सामने
मौत को भी आरजू मेरी बड़ी अच्छी लगी

महरो माह की रौशनी माना की अच्छी है मगर
सब्ज़ गुम्बद की मुझे तो रौशनी अच्छी लगी

दूर थे तो ज़िन्दगी बे रंग थी बे कैफ थी
उनके कूचे में गए तो ज़िन्दगी अच्छी लगी

आज महफ़िल में नियाज़ी नात जो मैंने पढ़ी
आशिकाने मुस्तफा को वो बड़ी अच्छी लगी

Leave a Comment