बेहरे दीदार मुश्ताक है हर नज़र
दोनों आलम के सरकार आजाइए
चांदनी रात है और पिछला पहर
दोनों आलम के सरकार आजाइए
सामने जल्वागर पे करे नूर हो
मुन्किरो का भी सरकार शक दूर हो
करके तब्दील एक दिन लिबास से बशर
दोनों आलम के सरकार आजाइए
सिद्रतुल मुंतहा अर्श बागे इरम
हर जगह पड चुके हैं निशाने कदम
अब तो एक बार अपने गुलामों के घर
दोनों आलम के सरकार आ जाए
मेरे गुलशन को एक बार चमकाईये
अपने जल्वों की बारिश में नेहलाईये
दी दये शोक को कीजिए बारवर
दोनों आलम के सरकार आ जाइए
शामे गुरबत है और शहर खामोशी है
एक अरशद अकेला कफन पोश है
खौफ की हे घड़ी वक्त हे पुर खतर
दोनों आलम के सरकार आ जाइए