एक मैं ही नहीं उन पर कुर्बान जमाना है

एक मैं ही नहीं उन पर कुर्बान जमाना है
जो रब्बे दो आलम का महबूब यगाना है

कल पुल से हमें जिसने खुद पार लगाना है
जहरा के वो बाबा है हसनैन के नाना है

आवो दरें जहरा पर फैलाए होवे दामन
ये नस्लें करीमो की लज पाल घराना है

ये केह के दरे हक से ली मौत ने कुछ मोहलत
मिलाद की आमद है महफिल को सजाना है

इज्जत से न मर जाऊं क्यों नामे मोहम्मद पर
यूं भी किसी दिन हमको दुनिया से तो जाना है

मेहरूमे करम इसको रखिए ना सरे मेहशर
जैसा है नसीर आखिर साहिल तो पुराना है

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