नाते सरकार की पड़ता हु मैं

नाते सरकार की पड़ता हु मैं
बस इसी बात से घर में मेरे रहमत होगी
इक तेरा नाम वसीला है मेरा
रंजो गम में भी इसी नाम से रहत होगी

ये सुना है के बोहोत घोर अँधेरी होगी
क़बर का खोल्फ ना रखना ये दिल
वहा सरकार के चेहरे की ज़ियारत होगी

उनको मुख़्तार बनाया है मेरे मौला ने
खुल्द में बस वही जा सकता है
जिसको हसनैन के बाबा की इजाजत होगी

हश्र का दिन भी अजब देखने वाला होगा
जुल्फ़ लेहरा के वो जब आएंगे
फिर क़यामत में भी इक और क़यामत होगी

मेरा दामन तो गुनाहों से भरा है अल्ताफ
इक सहारा है के मैं उनका हु
इसी निस्बत से सरे हश्र शफ़ाअत होगी

ये नाम कोई काम बिगड़ने नहीं देता
इक तेरा नाम वसीला है मेरा
रंजो गम में भी इसी नाम से राहत होगी

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