बेहरे दीदार मुश्ताक है हर नज़र
बेहरे दीदार मुश्ताक है हर नज़र दोनों आलम के सरकार आजाइए चांदनी रात है और पिछला पहर दोनों आलम के सरकार आजाइए सामने जल्वागर पे करे नूर हो मुन्किरो का भी सरकार शक दूर हो करके तब्दील एक दिन लिबास से बशर दोनों आलम के सरकार आजाइए सिद्रतुल मुंतहा अर्श बागे इरम हर जगह पड … Read more