दरे नबी पर ये उमर बीते
हो हम पे लूतफे दवाम ऐसा
मदीने वाले कहे मकानी
हो उनके दर पर कयाम ऐसा
यह रिफ्अते जिक्र ए मुस्तफा है
नहीं किसी का मकाम ऐसा
जो बाद जिक्रे खुदा है अफजल
है जिक्रे खैरुल अनाम ऐसा
जो गमजदो को गले लगा ले
बुरो को दामन में जो छुपा ले
है दूसरा कौन इस जहां में
सिवाये खैरुल अनाम ऐसा
बिलाल तुझ पर निसार जाऊं
के खुद नबी ने तुझे खरीदा
नसीब हो तो नसीब ऐसा
गुलाम हो तो गुलाम ऐसा
मुझी को देखो वह बेतलब ही
नवाज ते जा रहे हैं पैहम
न मेरा कोई अमल है ऐसा
न मेरा कोई है काम ऐसा
लबों पे नामें नदी जब आया
गुरैज़ पा हादसों को पाया
जो टाल दे ताहै मुश्किलों को
मेरे नबी का हे नाम ऐसा
नमाज अक्सा में जब पढ़ाई
तो अंबिया और रसूल यह बोले
नमाज हो तो नमाज ऐसी
इमाम हो तो इमाम ऐसा
मैं खालिद अपने नबी पे कुरबा
है जिनका खूलके अज़ीम कुर्आ
है रोशनी जिसकी दो जहां में
कही है माहे तमाम ऐसा
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