दाग़े फुरक़ते तैयबा क़ल्ब मुज़ मईल जाता
काश गुम्बदे खज़रा देखने को मिला जाता
मेरा दम निकल जाता उन्के आस्ताने पर
अनके आस्ताने की खाक में मैं मिल जाता
मेरे दिल से धुल जाता दागे फुरकते तैयबा
तैबा मैं फना हो कर तैबा मैं ही मिल जाता
मौत लेके आ जाती ज़िंदगी मदीने में
मौत से गले मिल कर जिंदगी में मिल जाता
खुल्द ज़ारे तैयबा का इस तरहा सफर होता
पीछे पीछे सर जाता आगे आगे दिल जाता
दिल पे जब किरण पड़ती उनके सब्ज़ गुम्बद की
उनकी सब्ज़ रंगत से बाग बन के खिल जाता
फुरकते मदीना ने वो दिये मुजे सदमे
कोह पर अगर पाडते कोह भी तो हिल जाता
दिल पे वो क़दम रखते नक़्शे पा ये दिल बनता
ये तो खाके पा बन कर पासे मुत्तासिल जाता
उनके दर पे अख्तर की हसरतें हुई पुरी
साईले दरे अक्दस कैसे मुन फईल जाता