बलगल उला बे कमालेही

बलगल उला बे कमालेही
क-स-फददुजाबे जमालेही,
हसनत जमी-उल-खिसालेही
सल्लू अलयहे व आलेही

वो कमाले हुस्न-ए-हुजूर है,
के गुमाँने नक्श जहाँ नहीं,
यही फूल खार से दूर है,
यही शम्मा है के धूवा नहीं।

सल्लू अलयहे व आलेही ……

मै निशार तेरे कलाम पार,
मिली यू तो किसको जुबा नहि,
वो सुखन है, जिसमे सुखन न हो,
वो बयाँ है जसका बयाँ नहीं।

सल्लू अलयहे व आलेही ……

करु तेरे नाम पे जाँ फिदा,
न बस इक जान तो जहाँ फिदा,
दोजहां से भी नहीं जी भरा।
करु क्या करोरों जहाँ फिदा।

सल्लू अलयहे व आलेही ……

सरे ला-माका से तलाब हुवी,
सुए मुन्तहा वो चले नबी,
कोई हद है उनके उरूज़ की,
बलगल उला बे कमालेही

सल्लू अलयहे व आलेही ……

बाबे आलम मैं बाबे बहारी चली,
सरवरे अम्बिया की सवारी चली,
वो सवारी सूए जाते बारी चली,
अब्रे रहमत उठा आज की रात है।

इतरे रहमत फरिश्ते छिलकते चले,
जिन्की ख़ुशबू से रस्ते महकते चले,
चाँद सूरज झीलो मे चमकते चले,
कहकसा झेरे पा आज की रात है…

तूर पर रीफ़अते ला-मकानी कहा,
लन-तरानी कहा, मन-रआनी कहा,
जिसका साया नहीं, उस्का शानी कहा,
उस्का एक मोअजीजा आज की रात है।

चस्मे हुश्ने तलाब हर क़दम साथ है,
दायें बायें फिरिश्तो की बारात है,
सर पे नूरानी सेहरे की क्या बात है,
शाह दुल्हा बना आज की रात है …

कोई हद है उनके उरूज की,
बलगल उला बे कमालेही।

बलगल उला बे कमालेही
क-स-फददुजाबे जमालेही,
हसनत जमी-उल-खिसालेही
सल्लू अलयहे व आलेही

तेरे आगे है यू है तपे-रचे,
वो शहा अरब के पले बडे,
कोई जान मुह मे जुबां नहीं,
नहीं पल के जिस्म मे जान नहीं…

सल्लू अलयहे व आलेही ……

करु मदहे अहले धोवन रज़ा
पडे इज़ बला मे मेरी बला,
मे गदा हू अपने करीम का,
मेरा दिन पाराए नाँ नही.

सल्लू अलयहे व आलेही ……

जीसे चाहा दर पे बूला लिया
जीसे चाहा अपना बना लिया
ये बडे करम के हैं फैसलें
ये बडे नसीब की बात है

सल्लू अलयहे व आलेही ……

ना तो मेरा कोई कमाल है
ना है दख्ल इस में गुरुर का
मुजे रखते हैं वो निगाह में
ये करम हैं मेरे हुजूर का

सल्लू अलयहे व आलेही ……

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