मेरी झोली में रहते हैं सदा टुकडे मोहम्मद के
अजल से खा रहा है यह गदा टुकड़े मोहम्मद के
मुझे है क्या पड़ी शाहों के दर से जाके मैं मांगू
खिलाता है मुझे मेरा खुदा टुकड़े मोहम्मद के
इन्हें खाकर अबू बकरो उमर उस्मान बनते हैं
यह रूत्बे मे है कुछ ऐसे जुदा टुकड़े मोहम्मद के
हे शहर ए इल्म खुद आका अली है उसका दरवाजा
तू दरवाजे पे और खाए जा पकड़े मोहम्मद के
मेरे मौला अलीयो फातिमा हसनैन के सदके
मेरी नस्लोको भी करना आता टुकड़े मोहम्मद के
कटा देना मोहम्मद नाम पर तुम गर्दने अपनी
के देते हैं यही दरसे मका टुकड़े मोहम्मद के